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यहां पर श्रमदान ही यज्ञ है

देसंविवि, हरिद्वार : सामान्य परिस्थिति में लोग दान शब्द का एक ही अर्थ निकालते है,  दूसरों को कोई वस्तु या धन देना। परन्तु गायत्री परिवार के संस्थापक और संरक्षक पं. श्रीराम शर्मा आचार्य ने दान शब्द से श्रम, समय तथा अंश को जोड़ कर उसका महत्व कुछ यूँ बढ़ाया कि आज गायत्री परिवार जैसा बड़ा संगठन खड़ा हो गया।

आज गायत्री परिवार के सभी प्रमुख केन्द्रों तथा शाखा संस्थानों में सभी छोटे बड़े कार्यों को समयदानी ही करते हैं। हमारे संस्थान की अलग पहचान श्रमदान और महायज्ञ से होती है। चाहे शान्तिकुंज हो या गायत्रीकुंज कोई भी बड़ा कार्य करने लिए श्रमदान महायज्ञ का आवाहन होता है, और देखते ही देखते असंख्य श्रमदानियों द्वारा वह कार्य चुटकियों में संपन्न हो जाता है।

देव संस्कृति विश्वविद्यालय में ये महायज्ञ गुरुकुल परंपरा को भी दर्शाता है। जिस प्रकार वैदिककाल में शिष्य गुरुकुल आश्रमों में मिल जुलकर आश्रम की देखभाल किया करते थे, वैसे ही इस विश्वविद्यालय में भी छात्रो को स्वेछा से इस महायज्ञ में हिस्सा लेने का अवसर मिलता है। छात्र-छात्राएँ इस मौके का भरपूर फायदा भी उठाते हैं।

इस बारे में एमजेएमसी की छात्रा रचिता श्रीवास्तव का कहना है कि उन्होंने विश्वविद्यालय कैम्पस में आयोजित श्रमदान से काफी कुछ सीखा है, इसके साथ-साथ खूब इन्ज्वॉय भी किया है। यह महायज्ञ हमें श्रमदान के महत्व के साथ-साथ एकता की शक्ति का बोध भी करवाता है।